मिडिल क्लास फैमिलीज में अगर पति का वेट बढ़ रहा हो और बिना कुछ पैसा खर्च किए वेट कम करना हो तो पत्नी और बच्चों को कुछ दिनों के लिए माएके भेजा जा सकता है। कम से कम मेरा अपना अनुभव तो यही कहता है। अब मैं ऐसा भी नहीं कह सकता कि सभी मिडिल क्लास फैमलीज में ऐसा ही होता होगा लेकिन अधिकतर में तो होता ही होगा। और फिर जिन्हें अपनी पत्नी के हाथों का खाना पसंद होगा उनके साथ तो पक्का होता ही होगा। (ये लाइन इस लिए लिख दी ताकि कोई बचकर निकलना भी चाहे तो न निकल पाए)। फिर अगर आपकी पत्नी और बच्चे दस पंद्रह दिनों के टूर पर निकल गए तो समझिए कि एक दो किलो तक का वेट तो कम होना ही होना है। अब इसकी वजह भी समझिए। दरअसल अधिकतर शादीशुदा मर्द पत्नी और बच्चों के न होने पर सुबह देर से सोकर उठते हैं। भले ही ऑफिस जाना हो लेकिन जब तक आखिरी डेडलाइन भी नहीं निकल जाती तब तक उठना गंवारा नहीं होता। अब उठने के बाद काम करने हैं सारे फटाफट। अब ऐसे में वक्त कहां होता है कि सुबह का नाश्ता किया जाए या फिर लंच पैक किया जाए। और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर आपने खाना बनाने वाली भी रख ली न तो उसका बनाया खाने का वक्त भी न
मिडिल क्लास लोगों की लाइफ में टू व्हीलर का बड़ा इंपॉर्टेंस होता है। दो पहिओं की मदद से मानों अगर मंगल ग्रह पर जाने की जरूरत हो तो भी एक बार को मन ही मन कोशिश कर लेंगे। कुछ दिलचस्प दिलेर ऐसे होंगे कि लगे हाथ मन ही मन गाड़ी का माइलेज सोच कर पेट्रोल का खर्च भी जोड़ने में जुट जाएंगे। मिडिल क्लास इंडियंस के लिए दो पहिए की गाड़ी मतलब उनका सबसे बड़ा कामकाजी सहायक। खूबी देखिए कि कई बार ये ऐसे घरों में रहते हैं जहां दो पहिया खड़ा करने की गुंजाइश न हो लेकिन भाई साहब एडजस्टमेंट भी कोई चीज होती है। सीढ़ी के नीचे लगे बिजली के मीटर के डब्बे को जरा इधर उधर किया, कोने में थूके पान, गुटखे को साफ करवाया और किसी तरह घुस-घुसा के गाड़ी खड़ी करने का जुगाड़ कर ही लेते हैं। अच्छा, एक बात और, दो पहिया न हुआ पूरी बैलगाड़ी हो गई। पति, पत्नी, दो बच्चे और उसके बाद खरीददारी का सारा सामान भी। वो तो भला हो नए जमाने के स्कूटर वालों का जो उन्होंने गियर खत्म कर दिए और डिक्की बड़ी कर दी। वरना पुराने वाले प्रिया, चेतक, लंब्रेटा की डिक्की में तो बस कहने भर का ही सामान आता था। तो भइया ये है कहानी मिडिल क्ला